हरितालिका तीज एक हिंदू त्योहार है, जो भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर में आता है। तो आइए हमारे आर्टिकल Haritalika Teej Vrat 2024 से जुड़े इसमें वो सारे बाते क्लियर से और विस्तार से समझाया गया है , की पूजा कब से और कैसे रखे , कौन सा शुभ मुहुर्त और शुभ योग पूजा के लिए सही होगा । जो भी महिलाए पहली बार इस व्रत को करेंगी उन्हें उनका मन का डाउट क्लियर हो जायेगा , और पूरे मन से इस व्रत को कर पाएंगी।
इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। व्रत रखने वाली महिलाएं सुबह स्नान करती हैं और फिर व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद वे भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और उन्हें भोग लगाती हैं।
हरितालिका तीज का महत्व यह है कि यह त्योहार महिलाओं को अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करने का अवसर प्रदान करता है। यह त्योहार महिलाओं को अपने परिवार और समाज में सुख और समृद्धि लाने का भी अवसर प्रदान करता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती है , पूरे तरह साज श्रृंगार कर के भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विधि पूर्वक करती है । हरितालिका तीज का यह त्योहार महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन्हें अपने जीवन में सुख और समृद्धि लाने का अवसर प्रदान करता है।
हरितालिका तीज व्रत की महत्व :
Haritalika Teej Vrat 2024 : हरितालिका तीज व्रत का महत्व पुराणों में वर्णित है, जिसमें प्राकृतिक फूल-पत्तियों और जड़ी-बूटियों का उपयोग करके फुल का हार बनाया जाता है , यह व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में मनाया जाता है । इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं । इसका उद्देश्य अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु की कामना करना है । हिंदू परंपराओं के अनुसार, हरितालिका तीज को आपकी इच्छाओं की पूर्ति और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सबसे पवित्र और शुभ व्रत माना जाता है। न केवल उत्तरी भारत में, बल्कि देश के दक्षिणी हिस्से में भी लोग हरितालिका तीज को भक्ति और उत्साह के साथ मनाते हैं। अलग अलग शहर में इस अलग नामों से जाना जाता है , इस त्यौहार को कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में गौरी हब्बा के नाम से जाना जाता है। लड़कियां और महिलाएं गौरी हब्बा की पूर्व संध्या पर देवी गौरी की पूजा करके और स्वर्ण गौरी व्रत रखकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं।
हरितालिका तीज शुभ मुहूर्त:
Haritalika Teej Vrat 2024 : हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को तीज मनाई जाती है। इस साल यह व्रत 06 सितंबर 2024, शुक्रवार को है। तृतीया तिथि 05 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी जो कि 06 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी। प्रातःकाल हरितालिका पूजा मुहूर्त सुबह 06 बजकर 01 मिनट से सुबह 08 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। पूजा करने का पूरा समय बस 2 घंटे और 30 मिनट का ही होगा ।
हरितालिका तीज व्रत की पूजा विधि एवं पूजा सामग्री :
पूजा सामग्री :
– भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या चित्र ले
– पूजा की थाली
– दीपक
– घी या तेल
– कपूर
– फूल (विशेष रूप से गेंदा और गुलाब)
– बेल पत्र
– धतूरा
– भांग
– शहद
– दूध
– दही
– गंगाजल
– पूजा के लिए वस्त्र
– फल और मिठाई
पूजा विधि :
1. सुबह स्नान करें और पूजा की थाली पर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
2. दीपक जलाएं और घी या तेल से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें।
3. कपूर से आरती उतारें और फूल, बेल पत्र, धतूरा, भांग, शहद, दूध, दही, और गंगाजल से पूजा करें।
4. भगवान शिव और माता पार्वती को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
5. फल और मिठाई का भोग लगाएं और भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करें।
6. रात्रि में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें और आरती उतारें।
7. व्रत के दौरान निर्जल रहें और भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करें।
8 . लड़कियों और महिलाओं दोनों को सुबह जल्दी स्नान करना चाहिए।
9 . महिलाएं लाल और हरे रंग के कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करना चाहिए ।
10 . घर के मंदिर में एक चबूतरे या वेदी पर भगवान गणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की अपने हाथों से उनकी प्रतिमाएं बना कर स्थापित करना चाहिए ।
11 . आप हरितालीका पूजा के लिए पंडित को भी बुला सकते है , या स्वयं भी यह पूजा करवा सकते हैं।
यह पूजा विधि और सामग्री हरितालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा लोग यथा शक्ति अपने शक्ति अनुसार लोग पूजा धूमधाम से भक्ति के साथ करते है ।
हरितालीका तीज व्रत कथा :
हरितालिका तीज व्रत कथा :
Haritalika Teej Vrat 2024 : देवी पार्वती अपने पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं। उस समय दक्ष प्रजापति के विरोध और इच्छा विरुद्ध जाकर देवी सती ने महादेव से विवाह किया था। दक्ष प्रजापति भगवान विष्णु से देवी सती का विवाह करवाना चाहते थे। लेकिन देवी सती भगवान शिव को अपना पति मान चुकी थीं। अंत में पुत्री की खातिर दक्ष प्रजापति को भगवान शिव के साथ सती का विवाह करवाना पड़ा। लेकिन दक्ष प्रजापति फिर भी शिव द्रोही बने रहे।एक समय दक्ष प्रजापति ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी देवी देवताओं, नाग, किन्नर, गंधर्व, ऋषियों को आमंत्रित किया। त्रिलोक में दक्ष प्रजापति के यज्ञ की चर्चा होने लगी। बात देवी सती के कानों में भी आई और वह दुखी हुई की उनके पिता ने महादेव और उन्हें यज्ञ में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया। इस बात से देवी सती को बहुत दुख हुआ और वह फिर भी बिना बुलाए पिता के यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं। महादेव में देवी सती से कहा कि, हे देवी बिना बुलाए पिता के घर जाने से भी मान सम्मान की हानि होती है इसलिए मेरी बात मानो और तुम ना जाओ।लेकिन देवी सती अपनी जिद्द में शिव की बात को मानने को तैयार न हुई और शिव से कहने लगीं कि आप भले न जाएं लेकिन मैं अपने पिता के यज्ञ में जरूर जाऊंगी। और वह शिव की आज्ञा बिना ही मायके चली आईं। दक्ष प्रजापति ने जब देवी सती को बिना बुलाए आया देखा तो देवी सती और महादेव का बड़ा अपमान किया। उस समय देवी सती को महादेव की बातों को स्मरण हो आया और अपनी भूल पर वह प्रायश्चित करने लगीं। सती ने कहा कि, महादेव के मना करने पर भी मैं यहां आई और मेरे कारण मेरे पति का अपमान हुआ है अतः अब किस मुंह को लेकर शिव के समक्ष जाऊंगी। दुःखी और क्रोधित हुई सती उसी समय पिता के यज्ञ कुंड में शिव का ध्यान करते हुए कूद गईं और सती हो गईं।देवी सती के अग्नि कुंड में देह त्याग की सूचना मिलते ही भगवान शिव अत्यंत क्रोधित होकर वीरभद्र को प्रकट किया जिसने दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट कर दिया। इसके बाद शिवजी घोर साधना में लीन हो गए। इधर देवी सती को भगवान शिव की आज्ञा का उल्लंघन करने का दंड भी मिला और उनका कई जन्म होता रहा। इस तरह देवी सती के 108 जन्म हुए। 107 जन्मों तक वह भगवान शिव को पुनः पति रूप में पाने के लिए तपस्या करती रहीं। 108वें जन्म में देवी सती का हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म हुआ।इस जन्म में देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए सावन में मृतिका से शिवलिंग का निर्माण करके भक्ति भाव से शिवजी की पूजन किया और तपस्या में लीन हो गईं। देवी पार्वती की तपस्या से अंत में प्रसन्न होकर हरियाली तीज पर भगवान शिव प्रकट हुए और देवी पार्वती को वरदान दिया कि तुम मेरी अर्धांगिनी बनोगी। इस तरह देवी हरियाली तीज के दिन देवी पार्वती को भगवान शिव से मनोनुकूल वर प्राप्ति का वरदान मिला। इसके बाद भगवान शिव ने देवी पार्वती के आग्रह पर कहा कि जो भी कुंवारी कन्या हरियाली तीज का व्रत करके भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करेगी उसे कामना के अनुसार सुयोग्य पति की प्राप्ति होगी और जो सुहागन महिला हरियाली तीज का व्रत करेगी उनका वैवाहिक जीवन प्रेम और सुख के भरा रहेगा।
व्रत कथा पूरी होने के बाद माता पार्वती को सुहाग का सामान अर्पित करें।
व्रत रखने वाले को रात्रि को जागरण करना चाहिए। व्रती भक्त पूरी रात को भजन-कीर्तन करते हैं। विवाहित महिला को दान-कर्म करना चाहिए , और अगली सुबह विवाहित महिला को खाने-पीने की चीजें, श्रृंगार सामग्री, कपड़े, गहने, मिठाई, फल आदि देते हैं। और अगले सुबह व्रत को पूरा कर के भगवान को नमस्कार कर अपने पूजा में हुई गलती के लिए क्षमा याचना मांग कर के व्रत को पूरा कर सकती है ।